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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Tragedy

"अफवाह-बाजार"

"अफवाह-बाजार"

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आजकल अफवाहों के बाजार गरम है।

जिसे देखो,उसे खुदा होने का भरम है।।

प्रकाश को ढक रहा,आजकल तम है।

सत्य रो रहा,लगाकर कोने में मरहम है।।

लोगों को तनिक न आ रही लाज-शर्म है।

जिसमें खाया,उसमें छेद कर रहे,बेशर्म है।।

आजकल अफवाहों के बाजार गरम है।

अपने ही ढहा रहे,अपनों पर सितम है।।

लहूं ने बदला,आजकल अपना वर्ण है।

लहूं भी बन चुका आजकल शबनम है।।

लोगों ने स्वार्थ ओर बढ़ा दिये,कदम है।

उन्हें गिरा रहे,जिनके कारण वजूद हम है।।

लोगो का इतना ऊंचा,आजकल,अहम है।

फ़लक भी शर्मिंदा,क्या यह नभ चरम है?।।

आजकल अफवाहों के बाजार गरम है।

झूठ बिक रहा,सत्य की रो रही,कलम है।।

पर जीतता वो जिसमें सँघर्षता का दम है।

झूठ,अधर्म चाहे कितना ऊँचा हो नभ है।।

भोर की एक किरण से मिटे रात्रि तम है।

आओ भीतर का सूरज उदय करे,हम है।।

जो खुद को देखते नित ही निगाहे करम है।

उनके भीतर रह नही सकता कोई वहम है।।

उनका अफवाह-बाजार में मिटता भरम है।

जो कीच मे बनते कमल से अनुपम पुष्पम है।


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