अफसोस
अफसोस
मेरी मिट्टी मे नफरत गैरों ने घोली,
अफसोस!
कि अब अपनो का रंग भी उजड़ गया !
किसी रोज़ जो चिडी़यां
तेरे शहर का हाल सुनाती थी,
सुना है किसी उत्तेजना से
उसका पर कतर गया !
तेरी आँखों मे जो बगावत है
क्यूँ बेवजह न मानु के जायज़ है,
कुछ तुझसे तेरा छीन गया
अफसोस!
वो तुझे उस सा कर गया !
मेरी मिट्टी मे नफरत गैरों ने घोली,
अफसोस,
कि तु बेवजह खुद पर तन गया !
कल शाम आंगन मे बैठे
उस बुढ़े की नज़र
तेरी देहरी पर युं टीकी
जैसे ढुंढे कोई बिछड़ा हमसफ़र !
तेरी यादों का वो साया
उसकी आँखों से युं छलक गया
अफसोस !
तुझे लगा कुछ आँखों में अटक गया !
मेरी मिट्टी में नफरत गैरों ने घोली,
अफसोस !
कि कुछ सपनों का सब रंग उधड़ गया !