पैसा तेरा रंग
पैसा तेरा रंग
पैसा तेरे रूप हैं कितने कोई जान न पाया
जिसने तेरे रूप को जाना वो अमीर कहलाया
तेरा साथ मिले तो पराये अपने बन जाते हैं
जब बुरे हों हालात तो अपने भी खो जाते हैं
जिसने ये रूप तेरा पहचाना वो नजीर बन पाया ...
पैसा तेरे रूप हैं कितने कोई जान न पाया....
शिकायत करते नहीं अपने इन हालातों की
जरा मुफ़लिसी क्या आई मंडी लगी जज्बातों की
ऐसा कौन बचा जो हम पर हँस ना पाया..
पैसा तेरे रूप हैं कितने कोई जान न पाया....
तुम्हें लगा मेरी मेहनत क्या गुल खिला पायेगी
रोक सको तुम मेरे हौसले ताकत कहाँ से आएगी
ईश्वर की ताकत इंसा कभी समझ ना पाया...
पैसा तेरे रूप हैं कितने कोई जान न पाया....
पैसे के पीछे सारे रिश्ते भूला भूला बैठा है
हाथ नहीं है कुछ भी तब भी रुला रुला ऐंठा है
पर 'सुओम' तेरा हौसला इसकी समझ ना आया....
पैसा तेरे रूप हैं कितने कोई जान न पाया.....