अनवरत
अनवरत
गुजर गए बरसों
पलक झपकते
पल वो गम के और
हँसी-ख़ुशी के
चाहा था न जाने कितनों को
कुछ नए कुछ पुराने
कुछ आये भी कुछ गए भी,
चलता रहेगा आवागमन का
यह चक्र निरंतर
पर संसार का पहिया थमता नहीं
साथ गतिमान रहना पड़ता हमें भी अनवरत
ज़िन्दगी आसान तो नहीं थी कभी
नित नए संघर्ष और अनथक प्रयासों की लम्बी कहानी,
अहमियत हो जिनकी ऐसे पलों और अपनों से भरी
परवाह की नहीं किसी की, कभी राह ऐसी भी थी दीवानी
कभी खड़ा रहा अपने दम पर
ढूँढ ही लिया पथ, अग्रसर हुआ बिना अवलम्ब के
बितायीं कभी आंसुओं भरी काली रातें
प्रतीक्षारत नयन लिए आशा नयी भोर के
पन्ने पलटता हूँ जब अतीत के
झलक जाता है शीशे की तरह साफ़
वरीयता दिया करता था जिन चीज़ों को कभी
समझ आया आज
नहीं ज़रूरी पूरा करने को प्रयोजन
इस धरा पे जन्म लेने का
जमा कर लीं कितनी वस्तुएं बेवजह
सुविधाओं के नाम पर कचरा-कबाड़
अंतर्मन को तसल्ली मिली नहीं फिर भी
चाहत और पाने की बढ़ती ही रही पल-दर-पल
खो न जाये यह आराम की ज़िन्दगी
रहा सदा भयग्रस्त
प्रतिष्ठा कम न हो जाये समाज में
करता रहा यह भाव त्रस्त
अनुभव यह हो रहा आज
दुनिया की नज़रों में पड़ जाती ये सब जल्द ही धुंधली
याददाश्त बहुत हलकी होती है उसकी
बढ़े मेरे हाथ कब मदद को
कष्ट में था जब भाई मेरा,
द्रवित हुई कब आत्मा मेरी
देख दूसरे का दुःख दारुण
करुणा उपजी कितनी हृदय में मेरे
पा किसी लाचार को कष्ट में
पैमाना वस्तुतः यही है सक्षमता का
सफल होता जीवन ऐसा करके ही
महत्वपूर्ण सबसे अधिक
मेरी नज़रों में मेरी कीमत
बन पाया कि नहीं
मैं अपना सर्वश्रेष्ठ स्वरूप
करते रहना है प्रयास सतत सहृदय बने रहने का
बरसाते रहना है प्रेम सुधा हर व्यथित हृदय पर
त्याग अहं का, अंगीकार संग का
आत्मा के परमात्मा से मिलन तक.