अंतर्जातीय विवाह
अंतर्जातीय विवाह
प्रेम तो अंधा होता है
समाज उससे भी ज्यादा,
प्रेम में जाति नहीं दिखती
जाति को प्रेम में फायदा।
गर प्रेम करने वाले जोड़े
खुद ही शादी करने लग गए,
तो निभाएगा कौन
दावत का वायदा।
दावत भी क्या बला है भाई
पण्डाल जितना बड़ा
थाली उतनी ही छोटी,
मैदान इतना बड़ा कि
रिक्शा से भी दूसरे छोर तक
पहुँचने में लगता है घण्टा आधा।
माना जमाना वो तुम्हारा भी था
कर लेते थे बिन देखे ही ब्याह
पर यह भी तो सच है,
ठहरा पानी सड़ जाता है
पड़ जाते हैं कीड़े मोटे-मोटे
परम्पराएँ भी बहता पानी है
जो तोड़ गिराती रूढ़िवाद को
चट्टानें धीरे-धीरे।
इसीलिए कहे विद्रोही
छोड़ सजातीय और विजातीय
समझो भावनायें, जो कहता
उन दोनों का मन
कर दो शादी उनकी उनसे
जिनसे मिलती दिल की धड़कन।।
