अंतिम विदाई
अंतिम विदाई
कहीं दूर
जब शाम का सूरज
डूबने को
तैयार बैठा हो,
आकाश की लालिमा
मद्धम मद्धम
अपनी छटा
बिखेरी रही हो,
लौटते पक्षी
अपने घोंसलों में
लौट जाने को बेताब हो,
नदियां किनारे
एक अजीब सा
सन्नाटा पसरा हो,
वादियों की
फुस फुसाहट
अपने में समा रही हो,
और मैं तन्हा
बस बिल्कुल अकेला,
किसी अपने की याद में
खामोश खड़ा
बस एक टक
निहारता
स्तब्ध सा,
अपनी धड़कनों के
उतार चढ़ाव में
उसकी हर सांस को,
उस बिछुड़न के दर्द को
उस मिलन की तड़प को
उस अंतिम विदाई को,
अपने अंदर तक महसूस कर
रो रहा हूं,
और ये आंसू
आंखो से बहते हुए
एक लंबी विदाई लिए
बस बहते पानी सा
बहे जा रहे हैं
जिन पर मेरा
अब कोई बस नहीं......!!!