अंतिम श्रृंगार
अंतिम श्रृंगार
सुहागन का श्रृंगार सजता लाल
जैसे कोई खिलता सुर्ख गुलाब
ह्रदय से करुण सजावट अरुण
गालों पे मल दिया रक्त गुलाल
माँग भरी भारी चटक सिन्दूरी
माथे फब्ती चमकीली लाल बिंदी
हथेली पर गाढ़ी लाल मेहँदी
ढेरों चूड़ी कलाई पे छन छन
पुराने बक्से अलमारी जो टटोला
सोला श्रृंगार मोती गहने घटचोला
संदूक में है रक्ताम्बर विवाह जोड़ा
मिल जाए कुछ निशानी पुरानी
सजना को है तन पर सजानी
मन सुन्दर यादों ने भिगोया
रजत केश सुनहरी कांति काया
आत्महीन देह इत्र की महक
लबों पर पान की सुगन्धि
लालिमा चेहरा की जैसे छाया नूर
लगे सजा आकाश में उगता सूर्य
देखते नहीं भरती नज़र न मन
सैय्याँ से पाई आखिरी चुनरिया
बेटी बहुएं पोतियां ओढ़ा रहीं शॉल
अनदेखा अनकहा सा मलाल
तेज़ रौनक भव्य मुख तृप्त
परिजन विरह वियोग संतप्त
क्रंदन करती नभ और धरती
लाल पुष्पों हारों से सुसज्जित
मुंदी अँखियों से सबको आशीर्वाद
पिया को किया अंतिम नमस्कार
विश्राम पथ पर अग्रसर ये दृश्य
संतुष्ट वृद्ध सुहागन की आज
प्राणनाथ के द्वार से चली अर्थी है।