अनप्लग्ड पोएट्री
अनप्लग्ड पोएट्री
उसकी आदत मेरी ज़रूरत सी लगतीं है
ना कुछ कह पाने की बंदिश में भी
वो सब कह जाती है...
ख़ामियों के ढ़ेर में भी
वो अक्सर,
मेरे ख़ूबियों की सुई ढूँढ़ा करती है ।
मेरे वहसीपन और
दरिंदिग्यों में मिले ज़ख़्मों को
वो अपने आँसुओं में छुपाया करती है...
मेरे संभल कर पुछने पर
उन चोटों कि ज़िक्र वो अक्सर भूला दिया करतीं है..
तुम्हें बताना चाहता हुँ
तुम्हारी आँखों में - मैं
मेरे अक़्स कि नज़रों को झाँक नहि पाता
हलक़ में अटकी बेचैनीयों को तुमसे छुपा नहि पाता !
ज़वाब ना मिलने पर
ख़ुद को आइने के साथ खड़ा रख़कर झुनझलाता हुआ ये सवाल करता हूँ
अख़िर क्यूँ ,
क्यूँ
क्यूँ....
मैं अधूरा क़िस्सा
अधूरी सवाल हुँ
वो पास होते हुए भी
मैं ख़ुद में हीं अनसुलझा एक ज़वाब हुँ...।।
अपना सारा चैन - सुख खोक़र
भी वो मेरे साथ है
मेरे पास है..।
मैं तो इसलिए भी ख़ुश हुँ
की मैं हार गया.....
...हाँ, मैं हार गया ।।
टूट गया मैं,
सर झुकायें - पलकें भिंगोये
मैं केह्ता हुँ
की मेरे सपने, मेरे ख़्वाब
उन तमाम ख़्वाहिशो का तालुक्क
वो ख़ुद में जोड़ ज़ाती है...
इन सारे सवालों के ज़ख़्म लिये उसकी तरफ़ भागता हुँ
रोता हुआ उससे लिपटकर
मैं बच्चों कि तरह सो जाया करता हूँ...।
वो मेरे माथे को चुमकर
एक ख़्वाब लाया करती है
उन सारे अधूरे सवालों का ज़िक्र
मेरे ख़्वाबों में कर जाया करती है ॥
अब तो तन्हाई के शब्दों से भी डर सा जाता हु
ख़ुदा कि अज़्मत रही होंगी उसपर
फ़ितूर उल्फ़त तक़ इनायत रखने की उनसे दुआ करता हूँ ।।