अन्कहे रिश्ते
अन्कहे रिश्ते
रिश्ते भी अब रिसने लगें हैं
गैर मुझे सब दिखने लगें हैं
कल तक था जो मन मुटाव
बन के नासूर टिसने लगें हैं
सच्चाई, ईमानदारी, तहजीब
धीरे-धीरे सब घिसने लगें हैं
बेहयाई ,बेईमानी, भ्रष्टाचारी
लंबे समय तक टिकने लगें हैं
हालात और हसरत के बीच
इंसानियत अब पिसने लगें हैं।
