अनकहे अल्फ़ाज़
अनकहे अल्फ़ाज़
हाँ अब रातों से बातें किया करती हूँ मैं।
हाँ उन अधूरी मुलाक़ातों की ख्वाहिशें किया करती हूँ मैं।
रोती नहीं अब उन बंद कमरों मे
अपनी कलम से अब तुझे लिखा करती हूँ मैं।
उन महफ़िलो मैं हुए तेरे हर ज़िक्र पे,
अब सबसे आंखे चुराया करती हूँ मैं।
कैसे करार कर दूँ मैं बेवफा तुझे,
आज भी मोहब्बत का वो जाम तेरे नाम किया करती मैं।
तेरी कही बातें कुछ इस कदर याद आती है मुझे,
की अब उन पर बेवज़ह ही मुस्कुराया करती हूँ मैं।
तेरे साथ चलते चलते,
अब उन रास्तों पे अकेली ही चली जाया करती हूँ मैं।
अब तो वो समंदर भी मुझसे सवाल नहीं करता।
कुछ इस कदर इन लेहरों मैं सिमट जाया करती हूँ मैं।
कैसे कहूं की तेरा ना होना मुझे कितना खलता है।
इसलिये रोज़ उस चाँद के आगोश में सो जाया करती हूँ मैं।
जाना दर्द तो बहुत होता है दिल मे मेरे,
फिर भी तेरे कहने पे तुझसे दूर जाया करती हूँ मैं।
लोग मेरी ख़ुशी का कारण पूछते हैं जब,
तुझसे की वो मोहब्बत का अंजाम बया किया करती हूँ मैं।
हाँ अब रातों से बातें किया करती हूँ मैं।
हाँ उन अधूरी मुलाक़ातों की ख्वाहिशें किया करती हूँ मैं।
