अनहोनी
अनहोनी
लक्ष्मण रेखा जीवन की जब लांघी जाती,
तब-तब मर्यादा तार-तार यहां पर होती !
फ़िर चाहें हो श्रद्धा सीता द्रोपदी या सती,
मूक रहने पर लज्जा उनकी कुर्बान होती !
आज दोराहे पे खड़ी है युवाओं की ज़िन्दगी,
जो किंकर्तव्यविमूढ़ हो गलत राह को चुनते हैं !
क्या होगा इस दौर के युवा और नौनिहाल का,
जो अपने जीवन मकसद से ही भटक जाते हैं !
इस कदर बढ़ चुकी है प्रेम प्यार की दीवानगी,
कि, धर्म रीति रिवाज़ सभी कुछ भूला जाते हैं !
रह रहें संग-साथ, कई वर्षो से परिवार से अलग,
फ़िर भी एक दूज़े को ढंग से समझ नहीं पाते हैं !
आज माहौल दिन पे दिन बिगड़ता ही जा रहा,
सुनने में आ रहीं हैं नित नयी जुर्म की कहानियां !
शायद रह गयी हमारे दिए संस्कारों में कोई कमी,
तभी हो रहीं हैं निर्भया, श्रद्धा साथ जैसी अनहोनियां !

