अंधी दौड़
अंधी दौड़
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क्यों करते हैं हम बताओ धर्म की लड़ाई,
हर इंसान में तो यहाँ बस बेईमानी समाई।
क्या अमीर क्या गरीब क्या किसकी पहचान,
देखो बेच दिया सबने यहाँ पर अपना ईमान।
पैसों की होड़ में सब ऐसी दौड़ लगाते हैं,
सामने खड़ी मौत को भी देख ना पाते हैं।
कौन भला समझाए इनको
यह पैसा नहीं मौत का दरवाजा है,
करहा रही है सारी दुनिया
हर तरफ जख्म अभी ताजा है।
चाहतें हर इंसान की होती हैं अलग-अलग
ले जाती गलत दिशा में उनके यह कदम,
नहीं रही इंसान को रिश्तों की पहचान
सबके अंदर बस गया लालच का हैवान।