अंधेरी कोठरी
अंधेरी कोठरी
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छोटे रौशनदानों से
चाँद की रौशनी
अंधकार भरी कोठरी में
कुछ लोगों से छिपकर
कुछ वीरों से मिलने
चली आती थी
जहां पीने के नाम पर
एक मटका,
सोने के नाम पर
एक कंबल,
बड़े ही संघर्ष पर मिले
जहां एक समय
क्रांतियों ने जन्म लिया
देश की नीतियाँ बनी
वहां समय समय पर
कुछ बहादुर लोग
खुशी खुशी आते
और सुनहरे चाँद से
संदेशा बयां करते
वह चारदीवारी
आज भी वैसी ही है
फर्क इतना है
आज का चाँद
उनसे बातें नहीं करता
कुछ छोटे चोर,
लुटेरे, जेबकतरे
आज भी
वहां पहुंच जाते हैं
मगर जिनके लिए
असल में वह बने थे
वह देश छोड़कर
भाग जाते हैं।