खुशी के पल
खुशी के पल


देखा है कभी चश्मे को, नाक से लिपटते हुए
देखा है कभी बालियों को, कान से चिपकते हुए
जैसे गले में टाई और, हाथ में घड़ी लिपट जाती है
ऐसे ही बचपन तुझ से, जिंदगी लिपटना चाहती है
बस छोटे से कद तक, सिमटना चाहती है
ख़ुशियों के दामन में, खोना चाहती है
जी फाड़ कर नादानों सा, हँसना चाहती है
भीड़ से कहीं दूर ये जिंदगी, बचपन चाहती है
गिरे उठे ज़ख्म लगे
उम्र की ठोकर पड़े
घाव हुए लालिमा छाई
बचपन तेरी याद आई
होश आया नज़रें अब, कमजोर हो चुकी हैं
फिदाओं की बहारें, अब कहीं खो चुकी हैं
ख़ुशियाँ थी जो अपनों में, हिस्सों में बंट गई
कुछ पल बिताई यादें, धागों सी सट गई
आस कहीं दूर से, कि वह चिड़िया लौट आए
बो सकें कोई बीज, जो ख़ुशियाँ लौटा जाए
डूबते सूरज को मैंने, रोज़ उगते देखा है
होश आया हो कहीं भी, ख़ुशियों को लौटते देखा है