अमृता प्रीतम और इम्रोज़ के नाम
अमृता प्रीतम और इम्रोज़ के नाम
ऐ जिंदगी, उस संध्या मिल मुझे इश्क़ का जाम लेकर
जब शाम के फूल अमृता लिखे इम्रोज़ का नाम लेकर
धीमी धीमी साँसों की आंच पर जब दिल जल रहा हो
सिगरेट का वही टुकडा जब धीमा धीमा सुलग रहा हो
कलम से खामोशी निकल कर कागज़ पर फैल जाए
रेशमी धूप के प्यार को तड़पता कोहरा जब फैल जाए
उन ठंडी रातों को शबनम फूलों को जब आँसू से चूमे
मेहबूबा के गम में पगला दीवाना छत पर नंगे पांव घूमे
दर्द के लंबे धागों में जब कोई ख्यालों के मोती पिरो दे
अपने गीतों से जादू फैलाने वाला कोई साहिर भी रो दे
क्या क्या हम पर न बीती तुमसे दिल लग जाने के बाद
जल उठा ये शहर, हमारे घर में आग लग जाने के बाद
सुनो ,चले भी आओ कि अब तुम बिन गुजारा कहाँ
इश्क़ के कारोबार में, मुनाफा तुम बिन दोबारा कहाँ
अमृता भी तो मिली थी इक संध्या किताबें छोड़ कर
इम्रोज़ ने भरे सारे रंग , पुराने दर्द को ब्रुश से तोड़ कर
ऐ जिंदगी, उस संध्या मिल मुझे इश्क़ का जाम लेकर
लिखेगा "यश" तराने अपनी मोहब्बत का नाम लेकर।