Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Yash Mehta

Abstract

4  

Yash Mehta

Abstract

इश्क़ फजूल

इश्क़ फजूल

1 min
299


तुझसे इश्क़ अब फज़ूल लगने लगा है

तेरी तरफ़ देखना उल जलूल लगने लगा है

रोज़ वही सूरज इंडिया गेट पर उतरते हुए

हर शाम का साया तेरी सूरत सा लगने लगा है

वो राजपथ जिस पर बच्चे उड़ाते थे बुलबुले

किसी दूर दराज श्मशान सा लगने लगा है

कनाट प्लेस की रौनक लूटी कोरोना ने

सेंट्रल पार्क मेरे दिल सा वीरान लगने लगा है

मेट्रो की येल्लो लाइन, एम जी रोड का स्‍टेशन

दस बरस बीते, वक़्त फिर वही लगने लगा है


तुझे तब जाने ही दिया होता, तो अच्छा होता

तुझे रोकने का फैसला अब गलत लगने लगा है

ये तेरी दी हुई उदासी ऐसी काबिज हैं आँखों में

किसी ने कहा, तू किसी पीर सा लगने लगा हैं

तुझे क्या लगता हैं ये सड़के यूँ ही सुनसान रहेगी

ये हैं दिल्ली, मेरा शहर अब मुझ सा लगने लगा हैं

वो जो घूम रहे हैं आजकल दक्षिण पूरब के आसमानों में

उठती आवाज़ों से उन्हें सिंहासन जाने का डर लगने लगा है


इश्क़ भी किया तुमसे और रश्क़ भी किया तुमसे

तुमको क्यों लगता हैं कि सबको सब सही लगने लगा है

मेरी बात समझ सको तो समझो, ये तो सीधी सीधी है

न कहना फिर क्यों मेरा लिखा टेढ़ा लगने लगा है

कृष्ण सरीखा प्रेम और कृष्ण सरीखी राजनीति

ये नया रण हैं पर क्यों महाभारत सा लगने लगा है



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract