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Yash Mehta

Romance

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Yash Mehta

Romance

तुम बिन

तुम बिन

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तुम बिन कुछ यूँ गुजरती हैं जिंदगी

जैसे भुला बैठा मुझे खुदा भी

फिर भी ना भूला मैं उसकी बंदगी

मुट्ठी बंद कर चुका हूँ

अब लकीरों वाली तकदीर नहीं पढ़ता

बहारें आ कर निकल जाती हैं

इन बागों में कोई फूल नहीं खिलता

पूछता हूँ बार बार

जब इतना तरसता हूँ तेरी जुदाई में

फिर क्यों तुझसे ख़्वाबों में भी नहीं मिलता

दिल की ये टीस

क्यों मुझे मजबूर नहीं करती

जो राह तुझ तक जाती है

इतना चलने पर भी क्यों नहीं मिलती

कोई जादू तो आये मेरी किसी नज्म में ऐसा

कि तू पढ़े तो कहे

"यश" तेरी मोहब्बत न ठुकराती

तो तू ऐसा लिख न पाता

शायर तो हुए होंगे बहुत

पर इस तरह 

दर्द काग़ज़ पर कौन उतार के लाता



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