अमर प्रेम
अमर प्रेम
बारिश की बूँदो सा प्रेम छलकने लगा।
जुल्फो को आँखो से हटा कर छूने लगा।
शर्म के पर्दो मे लिपट कर सिमटने लगी।
मेरी साँसे तेरी साँसो की सरगम
सुनने लगी।
आईने को देख नजरे चुराने लगी।
तुझ मे खो जाने के बहाने बनाने लगी।
दोस्ती मे प्यार,प्यार मे दोस्ती जरूरी है।
सुख का समय, साथ मिल जाए।
किस्मत की लकीरो मे जो नही है।
वो जरूरत बन जाए,मुस्कुराते होठो की वजह
काश! सुन कर अनजान नही बनते ।
मेरे सीने की धड़कन की सरगम थिरकने लगी।
इश्क की बारिशे रूमानी होने लगी।।
सुख जो मिला हर खुशी मिल गई।
हाथ थाम कर वादा करती हूँ।
दोस्ती का नाजुक रिश्ता
प्रेम की डोर से बाँध कर, दिल से दिल तक
रहेगे।
इस तरह, दूध मे पानी मिले जिस तरह।
जल में रहती मछली जिस तरह।
दूर करो मछली को जल से
हो जाए जो हाल।।
मेरे सुख समझ लो ......
मेरा हाल...........