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अल्फाज

अल्फाज

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सिल दिये आज आपने 

अल्फाज मेरे लब्जों से 

निकल आये आंसू

मेरी बंद आंखों से।


इतनी भी क्या बेकरारी 

बेहेने दो जज्बातों को 

अभी उम्र पड़ी है बाकी 

खुलने दो अरमानों को।


मोब्बत तो हम भी करते है 

इसीलिए तो है जिंदा 

वरना इस बेदर्द जमाने में

अपनेही देते है फांसी का फंदा।


मोहब्बत कैसे हुयी 

पता ही नहीं हमें सनम 

क्यूं हुयी पुछोगे तो 

बतानेमें कम पड़ेगा ये जन्म।


हम तो आपहीके है 

इसकी तो जमानेको भी है खबर 

तोडेगे दम आपहीके बाहों में

वही दफना देना खोदकर कब्र।


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