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Chaitrali Dhamankar

Others

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Chaitrali Dhamankar

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शर्म

शर्म

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जबसे बसी हूँ तेरी साँसों में 

लगता है समा सुहाना 

जबसे उतरीहूँ तेरे दिल में 

मिल गया जीने का बहाना ||

तुम्ही से होती है सुबह 

शाम भी होती है तुम्ही से 

रातों कीं नींद भी आती है 

गुजर के तुम्हारी गली से ||

झाँकती हूँ तुम्हारे सपनो में 

बाँहों में देखती हूँ खुद कॊ 

शर्म सी आती है थोडी 

भूल जाती हूँ हूँ सारे जहाँ कॊ ||





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