अलौकिक प्रेम
अलौकिक प्रेम
मुरली की धुन सुनके,
मैं यमुना तट आऊँ,
बन कर राधा, मैं तो
तुमसे मिलने आऊँ,
बन गई वृन्दा मैं तो,
निधि वन तुम आओ,
चितचोर हो तुम मेरे,
अब धड़कन बन जाओ,
सांकेतिक स्थल पर फिर से,
मिलने तुम आओ,
द्वारिकाधीश से तुम,
मेरे कान्हा बन जाओ,
फिर रास रचाकर तुम,
लीलाधर बन जाओ,
तुम मेरा समर्पण हो,
दिव्य प्रेम तुम बन जाओ।।

