अकेला
अकेला
आज थककर बिखर गया मैं
कुछ तो में अकेला था
और कुछ
चुप कर गया मैं।
हौसला बहुत था अंदर
पर दीवारें रिश्ता ऊँची बहुत थी
हर ईंट की खातिर
आज डर गया मैं।
जज़्बा सागर पार जाने का
दिल में था,
पर बयाने गम की फरियाद से
डर गया मैं।
मंज़िल सामने थी और
रास्ता भी पहचाना हुआ था
पर दिल की एक पुकार से
रुक गया मैं।
