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Mahendra Kumar Pradhan

Abstract

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Mahendra Kumar Pradhan

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अजीब शौक

अजीब शौक

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कैसा है मेरा लाडला ?

बहुत सताई तेरी याद

तो दौड़ी चली आयी ।


ओ मेरे जिगर के टुकड़े

मेरे चैन सुकून के आड़े

आती है तुझसे जुदाई ।


ये शौक भी क्या चीज है

इंसानों की ?,

इनको जरा समझा ऐ खुदा ।


वह रोते हैं अपने दुलारों से

होकर जुदा ,

फिर हमें क्यों करते हैं जुदा ?


सबको प्यारी है आजादी

मुक्त हवा की सांसे और

मां के आंचल की छाया ।


पर इंसानों के अजीब शौक ने

लूट लिए हैं कितने

निर्वाक जीवों की प्रीतमाया ।


किसी मां से उसके लाल को

कभी जुदा ना करे ,ऐ खुदा !

इनसान को ऐसा ज्ञान दे ।


मां तो मां होती है, जिसकी भी हो

मां की ममता का

इनसान सम्मान दे ।



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