अजीब शौक
अजीब शौक
कैसा है मेरा लाडला ?
बहुत सताई तेरी याद
तो दौड़ी चली आयी ।
ओ मेरे जिगर के टुकड़े
मेरे चैन सुकून के आड़े
आती है तुझसे जुदाई ।
ये शौक भी क्या चीज है
इंसानों की ?,
इनको जरा समझा ऐ खुदा ।
वह रोते हैं अपने दुलारों से
होकर जुदा ,
फिर हमें क्यों करते हैं जुदा ?
सबको प्यारी है आजादी
मुक्त हवा की सांसे और
मां के आंचल की छाया ।
पर इंसानों के अजीब शौक ने
लूट लिए हैं कितने
निर्वाक जीवों की प्रीतमाया ।
किसी मां से उसके लाल को
कभी जुदा ना करे ,ऐ खुदा !
इनसान को ऐसा ज्ञान दे ।
मां तो मां होती है, जिसकी भी हो
मां की ममता का
इनसान सम्मान दे ।
