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अजीब रिश्ता

अजीब रिश्ता

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अजीब रिश्ता रहा 

कुछ इस तरह अपनों से

पूछते रहे बार बार 

हम अपनी किस्मत से।


कि क्या चाहती है 

ऐ जालिम जिंदगी तू हमसे।

सामने तो आती हो मगर 

मुकर जाती हो पहचानने से।



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