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विजय बागची

Abstract

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विजय बागची

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ऐसे समय में

ऐसे समय में

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जब मौसम हरकतें नई-नई खा रही हो,

वक़्त साथ-साथ परेशानियां बढ़ा रही हो,

तब ना पूछो होता है हाल क्या, ऐसे समय में,

तन तड़पने लगता है ऐसे समय में


जब रुत खुशियों का लम्हा ला रही हो,

साथ ही ग़म भी पीछा लगा रही हो,

तब ना पूछो होता है हाल क्या, ऐसे समय में,

मन तरसने लगता है ऐसे समय में।


जब बटुओं की थैलियां खाली दिखने लगे,

साथ बाजार में बेरोज़गारी बिकने लगे,

तब ना पूछो होता है हाल क्या, ऐसे समय में,

निर्धन बरसने लगता है ऐसे समय में।


जब पार्टियों का दबदबा बढ़ रहा हो,

और देश भी सुधरता हुआ न लग रहा हो,

तब ना पूछो होता है हाल क्या, ऐसे समय में,

जन भड़कने लगता है ऐसे समय में। 


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