अहमक, न रे न
अहमक, न रे न
भाग कर कौन जाए
तेरे शहर की शाम है
सकूँ अब कैसे पाएं
तेरे शहर की शाम है
बादलों ने ढक लिया
खूबसूरत चन्द्रमा
बिजलियाँ कड़की
तड़क कर
शहर पूरा रौशन किया
भाग कर कौन जाए
तेरे शहर की शाम है
सुबह देखी रात देखी
लुट गया मैं यहाँ
हुस्न के बाज़ार का
अब बाशिंदा हो गया
भाग कर कौन जाए
तेरे शहर की शाम है
बिजलियों से खामख्वाह
दामन जलाऊँ
वसन मेरा तरबतर है
किसको दिखाऊँ
डूब कर हूँ फिर से उभरा
भाग कर कौन जाए
तेरे शहर की शाम है
