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Shobha Sharma

Abstract

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Shobha Sharma

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अद्वित प्रेम

अद्वित प्रेम

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आओ !! प्रिय मैं और तुम हम बन जाएँ

धरा-गगन को छोड़, क्षितिज हो जाएँ।

हो जहाँ सूरज-चाँद नभ - निहारिकाएँ,

अमृत -घट लिए, विभावरी घूंघट उठाएँ।।

आओ !! प्रिय मैं और तुम हम बन जाएँ ।।


आओ !! प्रिय साहिल छोड़ लहरों में समाएँ

प्रेम रस में उतर, तल की गहराई में खो जाएँ।

कुछ मोती सीपियों से चुने, कंठहार बनाएँ 

रत्नाकर के परिसर में, जीवन दीप जलाएँ।।

आओ !! प्रिय मैं और तुम हम बन जाएँ।।


आओ !! प्रिय उस लोक में विचरण कर आएँ

जहाँ मिले थे मनु- श्रद्धा, अपलक निहार आएँ।

संगीत की स्वर लहरी में मदमाती धुन सुनाएँ

चंद्रकिरणें जलराशी में हमारे प्रतिबिम्ब बनाएँ।।

आओ !! प्रिय मैं और तुम हम बन जाएँ ।।


आओ !! प्रिय व्योम-तारकों में छुप जाएँ

झिलमिल आभा मंडल में दीप्तमान हो जाएँ।

किसी लोक में वापस ना कभी आना चाहें

गगनदीप की डोली में जीवन के लमहे बिताएँ।।

आओ !! प्रिय मैं और तुम हम बन जाएँ।।


       


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