मैं और तुम
मैं और तुम
आओ ! प्रिय मैं और तुम हम बन जाएँ
धरा-गगन को छोड़ , क्षितिज हो जाएँ।
हो जहाँ सूरज-चाँदा नभ - निहारिकाएँ,
अमृत -घट लिए, विभावरी घूंघट उठाएँ
आओ ! प्रिय मैं और हम बन जाएँ।
आओ ! प्रिय साहिल छोड़ लहरों में समाएँ
प्रेम रस में उतर, तल की गहराई में खो जाएँ।
कुछ मोती सीपियों से चुने , कंठहार बनाएँ
रत्नाकर के परिसर में,जीवन दीप जलाएँ।
आओ ! प्रिय मैं और तुम हम बन जाएँ।
आओ ! प्रिय उस लोक में विचरण कर आएँ
जहाँ मिले थे मनु- श्रद्धा,अपलक निहार आएँ।
संगीत की स्वर लहरी में मदमाती धुन सुनाएँ
चंद्रकिरणें जलराशी में हमारे प्रतिबिम्ब बनाएँ।
आओ ! प्रिय मैं और तुम हम बन जाएँ।
आओ ! प्रिय व्योम-तारकों में छुप जाएँ
झिलमिल आभा मंडल में दीप्तमान हो जाएँ।
किसी लोक में वापस ना कभी आना चाहें
गगनदीप की डोली में जीवन के लम्हे बिताएँ।
आओ ! प्रिय मैं और तुम हम बन जाएँ।