मधुमास
मधुमास
नीलाम्बर से तुहिन रथ पर सवार
शनैः-शनै कुसुमावली को शीश धर
चले आओ तुम इन्द्र धनुषी रंग लिए
ओ ! मधुमास बिछ जाओ अवनि पर ।
शिशिर की गोद से उतर कर
धीरे-धीरे ठुमक -ठुमक कर
पैंजनी, लहराती हवाओं की पहनों
ओ ! मधुमास महको तुम सौरभ पर ।
रक्तिम पलाश में ठहर कर
सरसों का पीताभ मुकुट शीश धर,
अमराई से बौरों की मंजीरी लगाए
ओ ! मधुमास आ जाओ सिमट कर ।
कभी जब श्यामल घन छा जाते
धीमे-धीमे बारिश की बूँदें बरसा जाते,
वासंती बारिश में मोहकता मतवाली
ओ ! मधुमास आ जाओ लरजते लहराते ।
धवल -श्याम वारिद हटे नीलांबर से
प्रतिबिम्ब परिलक्षित हो उठा उदधि से,
दिनकर की तपिश बदल गई चाँदनी में
ओ ! मधुमास अब निकलो ठंडी चादर से।
वसुंधरा कहती है प्राण प्रिय हो तुम
दुल्हन मुझे बनाने प्रिय आते हो तुम,
लावन्ण्यता पर मेरी सब प्राणी मोहित है
ओ ! मधुमास संवारने अब आ जाओ तुम ।
नव -यौवना प्रकृति को संवार कर
ऋतु मास के अश्व रथ पर हो सवार,
चले जाते पहनाकर ग्रीष्म का आवरण
ओ ! बिछुड़े से मधुमास फिर आना मेरे पास ।