अधूरी उड़ान
अधूरी उड़ान
तक़दीर लिखी मेरी किस कलम से
ऐसा क्या गुनाह था मेरा
जो बना दिया मुझे इंसान
बता मुझे ऐ भगवान
भूल गए सब मेरी पवित्रता
बस देखते हैं
हूँ मैं हिन्दू या मुस्लमान
जब सीता थी
तो लगाए मुझपे इल्जाम
जब बनी द्रौपदी तो किया मेरा अपमान
कलयुग आया
सोचा भरूँगी उड़ान
लेकिन काट दिए पर मेरे
अपनी झूटी शान में
फेंक दिया मुझको किसी मंदिर में
कभी किसी गुफा पुरान में
ना समझा मुझे किसी इंसान ने
मेरे कातिलों को छोड़ कर
लगे है सब अपने धर्म की झूठी बखान में
कहते है रब बसता है हर इंसान में
पर उससे अच्छी थी शैतानियत
उस रावण शैतान में
मैं तो छोड़ चली ये दुनिया
मुझे तो तुम बचा न पाए
करना सुरक्षा अपनी माँ, बहन, बीवी की
कहीं उनपे कोई आंच ना आये
मैं तो उड़ ना पायी
देखना ना आये बाधा कोई
उनकी उड़ान में...!
