लड़ाई तकदीर से
लड़ाई तकदीर से
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आज हार गया
मैं फिर से
सोचा था लड़
जाऊँगा भिड़ जाऊँगा
पर हार गया मैं
तकदीर से
हर बार सोचता हूँ
करके दिखाऊंगा कुछ
पर जब मिलता है मौका
रूठ जाता हूँ खुद से
पता नहीं क्यों हार
जाता हूं मैं हौसला
समय पर नहीं कर
पाता कोई फैसला
छूट गए सब रिश्ते
नाते इस चक्कर में
जैसे छोर जाते है
साथ पत्ते पतझड़ में
तारों को छूने की
ख़्वाहिश रखने वाले
अब सोचते है जीने को
मिल जाए कुछ पल
इस भगदड़ में
तकदीर को क्या
दोष दूँ मैं
ग़लती है जब
खुद मुझ में
खैर कोई बात नहीं!
अभी खत्म कहा
हुआ है ये किस्सा
अभी कई रातें बाकी है
जागने को
कई दिन बाकी है
भागने को
अभी तो सालों पड़े है
मेरे तकदीर तुझसे
लड़ने को!
