अधूरी मोहब्बत
अधूरी मोहब्बत
एक सुबह कुछ हुआ था यूँ
उसने दिल को छुआ था यूँ ,
नाम पता कुछ पता नहीं
इसमें मेरी खता नहीं
उसकी कशिश थी या वक़्त की
बस आँख मिली तो हटी नहीं,
देखा था उसको पहली बार
शायद वही था पहली नजर का प्यार
जो दिल पर इस तरह छा गयी
लगता था कश्ती अब किनारे पर आ गयी,
कुछ रोज बाद फिर मिली वो
हमेशा दिखती थी खिली खिली वो
वैसी ही थी या मोहब्बत की शुरुआत थी
यूँ ही नहीं था सब, कुछ तो बात थी,
रेलवे स्टेशन पर मुलाकात होती थी अक्सर
नजरों ही नजरों में बात होती थी अक्सर,
वो कॉलेज में पढ़ती थी
मैं भी था नौकरी की तलाश में
एक ही रेल से सफर करते थे
शायद रोज मिलने की आस में,
इक शाम हम स्टेशन पर खड़े थे
गर्मी का मौसम और लोग बड़े थे
वो भी गर्मी से बेहाल थी
पर लग रही कमाल थी,
अपने बारे में बताना कुछ चाहती थी
किताब पर कुछ लिखा था
वो दिखाना चाहती थी
थोड़ी दूर थी मुझसे
पूरा ना पढ़ सका
कॉलेज का नाम ही पढ़ पाया
और आगे ना बढ़ सका,
नौकरी मिली मुझे उस दिन और वो छूट गयी
अपनी मोहब्बत कच्चे धागे सी टूट गयी
वही रुक गयी जो भी बात थी
बस वही हमारी आखरी मुलाकात थी
इस कहानी का ऐसा अंजाम सोचा ना था
इतनी जल्द बीत गयी वो शाम सोचा ना था,
कभी याद कर वो पल मुस्कुरा लेता हूँ
अधूरी मोहब्बत का किस्सा दोहरा लेता हूँ।

