अधूरी मनसा।
अधूरी मनसा।
रीति निर्मल भक्ति की तुम सीखो, निष्काम पूजा को अपनाओ।
त्याग,बलिदान पतंगे से सीखो, जीवन अपना सुखमय में बनाओ।।
विशुद्ध भाव अंतर में लाकर, सच्ची प्रीत गुरु से कर ले।
प्रेम की भाषा प्रभु हैं समझते, थोड़ी देर चिंतन तो कर ले।।
पुरुषार्थ गर तेरा साथ न देता, गुरु इनायतों को तू समझना।
गुरु ही तुझको पार करेंगे, सच्चे हृदय से उनको जपना।।
अशांत मन भी हर्षित होगा, गुरु प्रेम ही सर्वस्व होगा।
उनका दामन पकड़ कर रखना, उद्धार उनको करना ही होगा।।
सच्ची सरलता उनको है भाती, बनावट ही उनसे दूर भगाती।
अहंकार,दम्भ आने मत देना, सेवा भाव निकट है लाती।।
असली दर्शन गुरु के तब होंगे, जब अपने को अल्पज्ञ जानो
शरणागत की लाज हैं रखते, सबसे ऊपर गुरु को ही मानो।।
गुरु की असीम दया तब होगी,ईश कृपा भी तुम पर होगी।
"नीरज" अश्रु नैन बहाता, "अधूरी मनसा" कब पूरी होगी।।