अधूरे सपने
अधूरे सपने
थे रह गए जो सपने अधूरे
चाहता हूँ कि कर लूं पूरे
बंद आँखों से करूँ
या कि खुली आँखों से करूँ
इन आँखों में थे जो सपने अधूरे
ना जाने कब होंगे पूरे।
कुछ करने की ठानूं,
कुछ करने की सोचूँ या,
कि भाग्य भरोसे बैठे रहूं।
या कि कुछ कर्म करूँ ।
पहनूं घोड़े के नाल की अंगूठी,
या फिर पैरों में नाल लगा दौड़ूं।
छांव खोजता फिरूं या विश्राम करूं।
या की तेज़ धूप, बारिश में दौड़ता फिरूं।
इन आंखों में थे जो सपने अधूरे,
जाने कब होंगे पूरे?
करने हैं यदि सपने पूरे,
तो करनी होंगी लक्ष्य निर्धारित,
बदलने होंगे लक्ष्य में।
कर्म का सिद्धांत यही,
न भाग्य भरोसे होंगे पूरे।
