अच्छे बुरे इंसान
अच्छे बुरे इंसान
जाति धर्म के जाल में, जकड़ा हुआ समाज।
तुच्छ गैर को मानकर , खुद पर करता नाज़।।
खुद पर करता नाज़, भेद मानव में करता।
ऊंच नीच का जहर , जहन पीढ़ी के भरता।।
धीरू रहता राज , जीव कुछ अलग मर्म के।
भले बुरे इंसान , मिलें सब जाति धर्म के।।
