"मांं "
"मांं "
करुणा का सागर लिए, ममता की वह खान।
कायनात में है नहीं , मां के और समान।।
मां के और समान, जगत में लेकर आती।
पोषण निश्छल भाव ,भार बहुत वह उठाती।।
कह धीरू कविराय, वही आशा की अरुणा।
मिलता पहला ज्ञान ,रहे मां की ही करुणा।।
करुणा का सागर लिए, ममता की वह खान।
कायनात में है नहीं , मां के और समान।।
मां के और समान, जगत में लेकर आती।
पोषण निश्छल भाव ,भार बहुत वह उठाती।।
कह धीरू कविराय, वही आशा की अरुणा।
मिलता पहला ज्ञान ,रहे मां की ही करुणा।।