अबॉर्शन
अबॉर्शन
सृष्टि में जन्म लेने के पहले,
बेटियों को दिया जा रहा मार।
सदियों से बेटे की चाहत में,
नारियों पर हो रहा अत्याचार।
इक्कीसवीं सदी में अब तो,
कितना बदल चुका है संसार।
फिर भी बेटा ही कुल का चिराग,
मानसिकता है अभी सवार।
हर क्षेत्र में अब महिलाओं ने,
पुरूषों का तोड़ा है एकाधिकार।
फिर क्यों! अबॉर्शन से गर्भ में,
बेटियों का किया जा रहा संहार।
पुरूष प्रधानता के दर्प को,
नारी ने सब जगह तोड़ दिया।
कई जगह पुरुष वर्चस्व को,
नारी ने अब ख़त्म किया।
पढ़ लिख ख़ूब योग्य भी होकर,
बेटा बेटी में हम भेद करें।
क्यों! बेटे को कुल दीपक माने,
बेटी पर क्यों! न हम गर्व करें।
बेटियाँ बेटों से न ही कम हैं,
अब निश्चित यह मान लें।
अबॉर्शन स्त्री को दे कितनी पीड़ा,
हम इसे न करने को ठान लें।
अबॉर्शन से एक हीन भावना,
स्त्री के मन में पनपती है।
नारी अधिकार का है अतिक्रमण,
बुरा परिणाम भी देती है।
इंदिरा, साइना, सिंधू, मैरीकॉम,
अनगिनत बेटियों पे हमें गरूर।
फिर भी है बेटे की अभिलाषा,
स्त्री अबॉर्शन पे हैं मजबूर।