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Brajendranath Mishra

Abstract

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Brajendranath Mishra

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अभिसार को यादों मे पिरो लें

अभिसार को यादों मे पिरो लें

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खिड़कियों को बन्द मत करो, खोल दो

हवाओं को निर्बाध अंदर तो आने दो।

बादलों में उड़ रहे पवन के रेशों से,

बदन को स्नेहिल स्पर्श से भिगो लें।

अभिसार के क्षणों को यादों में पिरो लें।


उत्कंठित मन से, उद्वेलित तन से,

उर्जा के प्रबलतम आवेग के क्षण से,

यौवन से जीवन का अविचारित यात्री बन,

अंतर में टूटते तटबंध को टटोलें।

अभिसार के क्षणों को यादों में पिरो लें।


यहाँ प्रेम ज्वर नहीं जीवन का पर्याय है

खोजता है याचक बन बिखरने का उपाय है।

संचयन में नहीं, अभिसिंचन में अमृत कलश

उड़ेलकर देखे, विस्तार को समा लें।

अभिसार के क्षणों को यादों में पिरो लें।


देह, तरंग - सी खोजती है अतल तल

त्वचा और रोम - रोम सूंघते है प्रणय - जल।

आँखों क़ी तराई में डूबने दो आँखों को,

सांसों में सांसों को मिलाकर भीगो लें।

अभिसार के क्षणों को यादों में पिरो लें।


चाँद भी देता है लहरों को नेह निमंत्रण,

चांदनी लुटाती है सम्पूर्ण अपना यौवन।

है डूबकर ही जाना, जाना है डूबकर ही,

धड़क रहा है दिल तो, उसे धडकनों में घोलें।

अभिसार के क्षणों को यादों में पिरो लें।


नींद नहीं आती, गिन गिन कर तारों को

करवटें बदलकर सोयें, फैला चाँदनी का आँचल।

मलयानिल भी हो चला शांत, बहो धीरे - धीरे

पलकों को कर बंद, अमृत- कलश टटोलें।

अभिसार के क्षणों को यादों में पिरो लें।


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