अभिप्राय
अभिप्राय


गांव गांव शहर शहर और
हर भारतवासी के सीने मे
बन के धडकन उभरे ऐसे
प्यारी सी कविता अभिप्राय
देश के मुहाने पर डटे हुए
हर वीर सिपाही की आंखों
में देश की रक्षा के जज्बे सी
चौकन्नी निगाहें अभिप्राय
भटक रहा दर बदर है जो
तलाश में रोजी रोटी की
आशाओं की हर बंद डगर
का खुल जाना अभिप्राय
जिंदगी के कठिन सफर में
अंगारों सी तपती रेत पर
झुलसे कदमों पर लाश सी
ढोते की मरहम अभिप्राय
दूर भाग रहा एक दूजे से
खुदगर्जी के वशीभूत हो
नफरत की उस बयार में
इंसानियत ही अभिप्राय
बीच चौराहे तोड़ मरोड़ के
हर आने जाने वाले पर
हाथ पसारे हुए बालपन
को गले लगाना अभिप्राय
लूट फिरौती हत्या रंगदारी
डरी सहमी बलत्कारी से
चहारदीवारी कैद है उसका
स्वछंद विचरण अभिप्राय
डंडे बरसते देख अकारण
निर्दोषों की रुह कांपती जो
न्याय संगत हो राजनीति
पाप मुक्त शासन अभिप्राय!