अभिमान तुम्हीं थे !
अभिमान तुम्हीं थे !
सर पर कफ़न बाँध कर उसने
हमसे विदा लिया था
जाने किन किन पीडाओं को
उसने स्वयं सहा था
कभी ना लौटेगा वह अब फिर
मन को नहीं विश्वास
किसी मोड़ पर मिल जाएगा
अब भी लगी क्यों आस
तेरी ज़रूरत थी धरती को
मां का क़र्ज़ था तुम पर
ऋण से उऋण हो लिए तुम तो
चले गए अम्बर पर
नेंह तुम्हीं थे मान तुम्हीं थे
हम सबके अभिमान तुम्हीं थे
गीत तुम्हीं संगीत तुम्हीं थे
सरगम और सुर - ताल तुम्हीं थे
मंद समीर तुम्हीं कुछ बोलो
बेटे को जाकर तुम छू लो
मेरे आंसू नयन में रख लो
संग जाकर छक कर तुम रो लो।