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Aprajita 'Ajitesh' Jaggi

Abstract

5.0  

Aprajita 'Ajitesh' Jaggi

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अभिलाषा

अभिलाषा

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ओ तिरंगे तू बस, लहराता ही अच्छा लगता है 

दिल डूबता है, जब तू शहीदों पर बिछता है। 


पति, भाई, बेटा- सब तेरी खातिर अड़ जाते हैं 

मौत का कफ़न ओढ़, दुश्मन से लड़ जाते हैं 

ऑंखें पनीली होती हैं, जब वो जान न्यौछावर करते हैं 

तुझ में लिपटे हुए , घरवालों को वापस मिलते हैं 

शहीद बन जाने से कौन यहाँ डरता है 

सुन मेरे तिरंगे, तू बस लहराता ही अच्छा लगता है। 


शान से जब तू हवाओं से अठखेलियां करता है 

पदक जीतने पर , गर्व से ऊपर उठता है 

कोई खिलाड़ी तुझे , सर चढ़ा कर हँसता है 

उनकी पोशाकों में , तेरा लघु रूप जचता है 

जीत के जश्न में , तेरा रूप कितना खिलता है 

सुन मेरे तिरंगे, तू बस लहराता ही अच्छा लगता है । 


सुन ले ये पुकार तू , बन जा उन की ढाल 

जो तेरे लिए लड़ लड़, हो रहें है निहाल 

जिनके लिए उनके अपने , सपने रहे हैं पाल 

दुश्मन जो बिछाता है , तोड़ दे तू वो जाल 

बचा ले अपने वीरों को, तू क्या नहीं कर सकता है 

सुन मेरे तिरंगे , तू बस लहराता ही अच्छा लगता है । 


दिल टूटता है , जब तू ताबूतों को ढकता है 

सुन मेरे तिरंगे , तू बस लहराता ही अच्छा लगता है ।


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