लोहे सी मजबूत
लोहे सी मजबूत
माली भी अपना पौधा,
उस बगिया में नहीं देता है;
जहाँ पौधे का बिन पानी
मुरझाने का डर रहता है।
कैसे कर देते हैं बाबुल,
रिश्ता लड़की का उस घर में,
जहाँ प्रेम -स्नेह के अभाव में,
सूखने का डर रहता है।
ये कैसे बंधन है,
ये कैसे रीत रिवाज हैं,
सच बोलो तो रिश्ते,
टूटने का डर रहता है।
कैसे यकीन कर ले
लड़की दूजों की बातों का
हर शख्स से यहाँ
लूटने का डर रहता है।
लोहे सी मजबूत बनो तुम
भूल के पिछली बातों को
मिटटी की ही रह जो गयी
फूटने का डर रहता है।