सुहाग की निशानी
सुहाग की निशानी
सुनो ! सुनो न,
तुम्हारे साथ की जो लकीरें
दयालू विधाता ने उकारी हैं
मेरी हथेलियों पर,
उन्हें मैं मेहँदी से
क्योंकर छुपाऊँ।
मेरी कलाइयों में
सरसराता अहसास है
तुम्हारे हाथों से थामे जाने का,
उन्हें चूड़े की छुवन की
भूलभुलैया में कैसे गुमने दूँ।
सुनो मेरा माथा यूं ही
गर्व से चमकता है कि
हम दोनों साथ हैं
और सदा -सदा रहेंगे,
सिन्दूर के छींटे से वो
चमक क्यों धुँधलाऊँ ?
हम दोनों का प्रेम
हमारे ह्रदय में खिला है,
रोजमर्रा की छुट -पुट
बातों से फला है।
आँखों की चमक
हंसी की खिलखिलाहट,
जिंदगी का चैन -सुकून,
हम दोनों का।
हाथों में हाथ डाल कर टहलना
एक दूसरे की आँखों में
अनकहा पढ़ लेना
बिन कहे
एक दूजे की बातें समझना।
यही सब हैं
तुम्हारे -मेरे प्रेम की कहानी
मेरे सुहाग की निशानी !
