अबार्शन
अबार्शन
माँ ! मैं तेरा एहसास हूँ ,
मुझे महसूस तो कर,
जो आई मैं तेरी ज़िन्दगी में
तो बदल जायेगा सब खुश होकर।
मेरा अस्तित्व ,पिता का प्यार है,
पर माँ तूने मुझे, अपने लहू से सींचा है
तेरी बगिया के फूल में
मेरी भी अभिलाषा है।
जो जन्म तूने मुझे दिया
आँगन तेरा महकेगा
ऊँ ऊँ की किलकारी से
कभी हंसेगा तो कभी रोयेगा।
मैं कौन हूँ,
ये ज़रूरी नहीं है जानना,
क्यों डरती है तू ?
समाज कब हुआ है किसी का?
तू जन्म दे मुझे माँ ,
वादा है मेरा तुझसे, साथ तेरा निभाऊँगी
तेरे आँचल के साये में बड़ी होकर
दूध का कर्ज उतार जाऊँगी।
अब जो तुझे पता चला
तो क्या साथ मेरा दोगी ?
मुझे अपने दामन के साये से
माँ दूर तो न करोगी?
तुम भी तो बेटी हो माँ
दर्द मेरा समझोगी ?
मेरी नानी की तरह
तुम भी मुझे पेहचान दिलाओगी?
