अब ये सपने बोझ नहीं लगते
अब ये सपने बोझ नहीं लगते
किसी अपने के सपनों के पीछे भागते-भागते;
अपने अधूरेपन को टटोलते हुए;
इस तेज़ जिंदगी की दौड़ मे रेंगते हुए;
जब थक कर एक पड़ाव पर पहुँचे।
तब पलकें बंद हुई,
और एक शख्स सामने आया,
यह एक सपना था,
जो मुझे अपना लगने लगा।
इस दुनिया में,
मैंने अपना अक्स देखा,
जो था बेहद खूबसूरत और तृप्त
अपनी सभी चिन्ताओं से मुक्त।
इस दुनिया में मेरे लिए
‘मैं’ पहले स्थान पर थी,
मेरी आकांक्षाएँ,
एक नयी उड़ान पे थी।
लेकिन मेरी नाज़ुक पलकों से
मेरी खुशियों का
यह बोझ उठाया न गया।
टूट गया सपना,
अब मेरे सुकून का ठिकाना न रहा,
बहुत कोशिशों के बाद भी,
वह सपना फिर न दिखा।
तभी अचानक एक दिन,
कुछ नन्ही उंगलियों ने मेरा हाथ थामा,
उन बड़ी-बड़ी बिल्लौरी आँखों में,
मुझे वही अक्स एक बार फिर दिखा।
अब फिर से सपने देखने लगी हूँ,
लेकिन अब उन चमकीली आँखों से,
फिर से उड़ने लगी हूँ,
उन छोटे छोटे क़दमों के साथ।
लेकिन अब यह सपने
बोझ नहीं लगते,
हाँ, अब यह सपने
बोझ नहीं लगते।।