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Shagufta Jaipury

Others

5.0  

Shagufta Jaipury

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लेकिन अब ...

लेकिन अब ...

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मेरे पापा की बिटिया सायानी हो गयी,

अपना घर छोड़ के, किसी और घरौंदे की रानी हो गई

वह एक दिन अपने सिंहासन पर बैठी सोचने लगी,

अपनी यादों के झरोखों मे चुपके से झाँकने लगी

कहाँ गए वो टिमटिमाते हुए सारे,

मेरे ख़्वाब जो मुझे बहुत थे प्यारे

इन तारों मे, मैं भी एक सितारा बनूँ ,

और सबसे ज्यादा जगमगाने वाला बनूँ

लेकिन अब ....


कभी कपड़े समेटते हुए, कुछ सपने

समेट के रख दिए

तो सब्जी काटते हुए, कुछ ख़्वाब

कट कर बिखर गए

कभी बच्चों के शोर मे, इन इरादों का जोश

दब के रह गया

तो कभी औरों के सपने पूरे करते करते,

अपना सपना कही खो के रह गया....



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