क्यों ये मृगतृष्णा
क्यों ये मृगतृष्णा
मैं जानती हूँ कि प्यार है,
भीतर मेरे ही,
फिर क्यों ये मृगतृष्णा !
क्यों ढूंढती फिरू इसे,
हर जगह, हर दरीचों में
मैं जानती हूँ कि मेरी,
ख़ुशियाँ है मुझ से ही,
फिर क्यों ये मृगतृष्णा !
क्यों अपनी खुशी,
टटोलती हूँ, दूसरों की जेबों में
मैं जानती हूँ कि मैं,
एक माँ हूँ, कर्तव्यनिष्ठ,
फिर क्यों ये मृगतृष्णा !
क्यों अपना बचपन,
खोजती हूँ, इन टूटे खिलौनों में