अब वक्त कहा है
अब वक्त कहा है
इन बूढ़ी थकी आंखों में
अब वो चमक कहाँ है,
इन धीमे पड़ते कदमों में
अब वो धमक कहाँ है,
बोली में भी वो तेज नहीं
मन में है ढलता साहस
काम अधूरे जो रह गए बाकी
अब पूरे करने का वक्त कहाँ है
जीवन भर जिनके लिए जिया
ना जाने अब वो लोग कहा है,
अपनी खुशियों को कुर्बान किया
जो कहते हो, मुझमें वो लोभ कहा है,
आंखों में भी अब वो नींद नहीं
जो सजा सकूँ अब नए सपने
कुछ सपने है अधूरे मेरे भी पर
अब पूरे करने का वक्त कहा है