अब नींद किसे होती है
अब नींद किसे होती है
अब नींद किसे होती है,
और चैन किसे आता है,
तन्हाई में खोकर मन जब,
ग़म को गले लगाता है,
वो रो नहीं पाता है,
सपनों में खो नहीं पाता है,
कल-कल की चिंता में,
खुश हो नहीं पाता है,
फिर से सिमट कर तब वो,
पग नई दिशा बढ़ाता है,
कभी विफल हो जाता है,
कभी सफलता हाथ लगाता है,
पर राह नई बनाता है,
चलना भी सीख जाता है,
रुक-रुक कर भी वो,
मंज़िल को गले लगाता है,
अब नींद किसे होती है,
और चैन किसे आता है।
इक मंज़िल हाथ लगी जब,
दूजे से भी भर जाता है,
थोड़ा-सा ही मुस्काता है,
और लक्ष्य बड़े बनाता है,
चींटी की चाल चलकर के,
सफलता का मार्ग सजाता है,
अब नींद किसे होती है,
और चैन किसे आता है।
कभी राह नहीं मिलती जब,
मुसाफिर हो जाता है,
छोटे-छोटे कदमों से,
लंबी निशान बनाता है,
आस नये जागता है,
राह नये बनाता है,
दुनिया कहेगी क्या छोड़ के,
मन की सुनने लग जाता है,
कुछ नया ही कर जाता है,
कुछ नया ही बन जाता है,
अब नींद किसे होती है,
और चैन किसे आता है।