अब नाता है
अब नाता है
रिश्तों की पोटली हैं गुम सी कहीं गई
दिखता ना नेह का कहीं अब नाता है,
अपनी-अपनी स्वार्थों से जूझ रहे सभी यहां
दया और ममता न स्नेह अब भाता है।
हो गए हैं अन कहे रिश्ते सभी यहां
अपने पराए हुए रोज रोज जाते हैं,
अब नाता है
टूट गया प्रेम का वह बंधन रहा नहीं
दिल से मिले ना दिल हिय न समाता है।
होके मगरूर भए चूर सब स्वार्थों में
इंसानियत का नाही मानवता का नाता है,
कहत शिवम् सुन आज है विरह दुःख
होय इस जग का भाग्य ही विधाता है।
